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लेखनी कहानी -22-Aug-2022 चैन की बंसी

"हैलो नव्या" 

"हां बोलो विवान" 
"ऐसा करना , आज शाम को ठीक आठ बजे डॉक्टर मिताली के यहां पहुंच जाना । मैं भी जैसे तैसे मैनेज कर के पहुंच जाऊंगा । और हां, ठीक आठ बजे पहुंच जाना । देर मत करना । आठ बजे का अपॉइंटमेंट मिला है । अगर विलंब हो गया तो फिर अंत में नंबर आयेगा" विवान ने नव्या को चेताते हुए कहा । 
"ठीक है मैं पहुंच जाऊंगी । पर ये बताओ कि आज ही अपॉइंटमेंट कैसे मिल गया ? डॉक्टर मिताली के यहां तो महीने भर से पहले नंबर आता ही नहीं है" नव्या आश्चर्य से बोली 
"ये मत पूछो , बस जुगाड़ कर लिया । इसके बारे में फिर कभी बताऊंगा । अभी तो बहुत सारा काम निबटाना है । अच्छा,  अब रखता हूं" और विवान ने फोन काट दिया । 

नव्या को बड़ा अच्छा लगा कि डॉक्टर मिताली से अपॉइंटमेंट मिल गया है । अब शायद उनकी समस्या का भी कोई समाधान निकल आये । डॉक्टर मिताली का इतिहास रहा है कि जो भी उसके पास आया है , खाली हाथ नहीं लौटा है । इसीलिए तो भीड़ लगी रहती है उसके क्लीनिक में । पर, उन्हें तो अपॉइंटमेंट मिल चुका था , इसलिए अब उम्मीदों के पंखों पर सवार होने में कोई बुराई नहीं थी । 

ठीक पौने आठ बजे नव्या डॉक्टर मिताली की क्लीनिक पर पहुंच गई थी । विवान अभी एक मिनट पहले ही आया था । कितनी भीड़ लगी हुई थी । पैर रखने को भी जगह नहीं थी वहां पर । सभी आगन्तुक संभ्रांत से लग रहे थे । ऊंचे लोग , ऊंचा पहनावा और ऊंचा स्टेटस । नव्या उन सबको देखकर आश्चर्य चकित रह गई । क्या ये सब भी उसी की तरह मानसिक रूप से बीमार हैं ? शायद ? इसीलिए तो ये यहां आये हैं नहीं तो यहां क्यों आते ? ये कोई रेस्टोरेंट तो है नहीं जो कुछ खाने पीने आये हों । यह तो एक क्लीनिक है और वह भी मानसिक बीमारी का । तो क्या इतने लोग मानसिक रूप से बीमार हैं ? क्या पैसा ही इसके पीछे कारण है ? पहनावे को देखकर तो ऐसा लगता है । नव्या मन ही मन सोच रही थी कि असिस्टेंट ने उनका नाम पुकारा और वे डॉक्टर के कमरे में दाखिल हो गये 

डॉक्टर मिताली ने एक मीठी मुस्कान से दोनों का स्वागत किया और पूछा "आप आरव को कब से और कैसे जानते हैं" 
"आरव मेरी ही कंपनी में मेरा असिस्टेंट है" 
"ओह, तो ये बात है । तभी कह रहे थे कि भाभी , आज ही अपॉइंटमेंट दे देना नहीं तो बॉस खाट खड़ी कर देंगे" । कहकर मिताली के साथ सभी लोग हंस पड़े । 

इसके बाद काम की बातें शुरू हुईं । 
"आपके वर्किंग ऑवर्स क्या क्या हैं" ? 
"जी, मैं तो सुबह 11 बजे जाता हूं और रात को दो बजे आता हूं । नव्या सुबह 5 बजे जाती है और शाम को 7 बजे आती है" विवान गहरी सांस लेकर बोला 
"तो इसका मतलब है कि तुम लोग गुड मॉर्निंग तक नहीं करते ? शायद रविवार को ही गुड मॉर्निंग होती है आप लोगों की" ? 
"जी, सही कहा आपने । ये प्राइवेट कंपनी वाले इतना निचोड़ लेते हैं कि घर तक आते आते आदमी निढाल हो जाता है" 
"हूं । एक बात पूछूं आपसे , अगर इजाजत दें तो" ? 
"जी, अवश्य पूछिए" 
"कितनी तनख्वाह है आपकी" ? 
"मेरा तो साठ का पैकेज है और नव्या का पचास का है" 
"महीने का खर्च कितना है" ? 

थोड़ी देर तक विवान सोचता रहा फिर बोला "यही कोई दो ढाई होता होगा" 
"यानि कि साल का लगभग तीस लाख रुपया । मतलब दोनों का पैकेज करीब एक करोड़ का है और खर्च लगभग तीस लाख रुपए का । इस तरह तो आपकी साल भर की बचत कम से कम पचास लाख रुपए की होती होगी आयकर काटकर" ? 
"जी हां" 
"इतना पैसा होने के बाद भी शांति नहीं है जिंदगी में" ? 

नव्या और विवान दोनों चुप हो गये । "सच बहुत कड़वा होता है । पैसा मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने तक तो सुख देता है , पर इसके आगे वह दुख ही देता है । यही हकीकत है । मगर इसके बाद भी लोग पैसे के पीछे भाग रहे हैं और मानसिक बीमार हो रहे हैं । पर लोग इसे समझ नहीं रहे हैं या समझना नहीं चाहते हैं । पैसा तो अंधा कुंआ है । अनंत गहरा है । इसमें गिरने के बाद बाहर निकलना असंभव है । अच्छा एक बात बताओ नव्या" ? 

डॉक्टर मिताली ने नव्या की ओर देखा तो नव्या की प्रश्न वाचक निगाहें मिताली के चेहरे पर जम गईं 
"क्या बीस लाख के पैकेज से काम नहीं चल सकता है" ? 

नव्या थोड़ी देर तक सोचती रही फिर बोली "काम तो चल सकता है पर यह मेरी डिग्रियों के अनुरूप नहीं है । मेरे सब साथी मुझ पर हंसेंगे और मेरा उपहास उड़ाएंगे" 
"तो क्या तुम्हें शांति से ज्यादा अपने सम्मान की चिंता है" ? 

नव्या खामोश हो गई । नव्या को चुप देखकर मिताली ने कहा "चुप रहने से काम नहीं बनेगा , बोलिए कुछ" 
"शांति की जरूरत ज्यादा है" नव्या धीरे से बोली । 
"देखो, अगर बड़ी कंपनियों में काम करोगे तो वे आपको बेशक पैकेज बड़ा देंगे मगर आपकी जिंदगी गिरवी रख लेंगे । जितना ज्ञान तुम जैसे लोगों के पास है तो अक्सर ऐसे लोग पैकेज और मल्टी नेशनल कंपनी का लेवल देखकर ऐसी कंपनियां ज्वाइन कर लेते हैं मगर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेते हैं । अगर खुशी चाहते हो, शांति चाहते हो तो छोटी कंपनी में अपनी शर्तों पर नौकरी करो । कम से कम फैमिली लाइफ तो एंज्वॉय कर सकोगे । हो सकता है पैसा थोड़ा कम मिलेगा पर चैन तो मिलेगा । आराम तो मिलेगा । रोज गुड मॉर्निंग और गुड नाइट तो हो सकेगी । साथ सो सकोगे , एक टाइम तो साथ खाना खा सकोगे । वीक एंड पर कहीं जा तो सकोगे" । 

अब नव्या और विवान को खुशी के ताले की चाभी मिल गई थी । दोनों ने दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली जहां पर दोनों के वर्किंग ऑवर्स एक जैसे थे । अब दोनों चैन की बंसी बजाने लगे थे । 

श्री हरि 
22.8.22 

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8 Comments

Chetna swrnkar

24-Aug-2022 12:38 PM

Nice 👍

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सुंदर रचना 👍

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Mithi . S

23-Aug-2022 01:50 PM

Nice

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